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Sakat Chauth Vrat Katha
कथा का प्रारंभ: पुराने समय में एक गांव में एक ब्राह्मणी अपने पति और बच्चों के साथ रहती थी। उसका परिवार बहुत गरीब था, लेकिन वह धार्मिक और सच्ची श्रद्धा से भगवान गणेश की पूजा करती थी। एक दिन वह अपनी दिनचर्या के अनुसार गणेश जी की पूजा करने के लिए मंदिर में गई, और वहां उसने भगवान गणेश से कहा, "हे गणेश भगवान, मुझे और मेरे परिवार को सुख-शांति दें और मेरे संतान का स्वास्थ्य भी अच्छा रखें।"
गणेश जी ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, "तुम्हारे परिवार में संतान का सुख और सबकी रक्षा होगी, लेकिन तुम्हें एक व्रत रखना होगा। माघ माह की कृष्ण पक्ष की चौथ तिथि को इस व्रत को करना होगा, तब तुम्हारे घर में सुख-शांति रहेगी और तुम्हारी संतान स्वस्थ रहेगी।"
ब्राह्मणी का व्रत और उसका पालन: ब्राह्मणी ने भगवान गणेश के आशीर्वाद को स्वीकार किया और सकट चौथ के दिन व्रत रखने का संकल्प किया। इस दिन उसने पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ उपवासी रहकर भगवान गणेश की पूजा की और मोदक अर्पित किए। पूजा के बाद उसने व्रत की कथा भी सुनी और संतान सुख की कामना की।
व्रत के बाद ब्राह्मणी की संतान स्वस्थ और खुशहाल हुई, और उसके घर में समृद्धि और सुख-शांति बनी रही। साथ ही, उसका परिवार भी खुशहाल और संपन्न हो गया।
कथा का सन्देश: कथा में यह बताया गया कि सकट चौथ का व्रत रखने से भगवान गणेश की विशेष कृपा मिलती है, जो संतान सुख, समृद्धि, और घर में शांति लाती है। व्रत के दौरान पूजा करने और संतान के लिए आशीर्वाद लेने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। साथ ही, व्रति को भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वह सुख-शांति से परिपूर्ण जीवन जीती है।
Sakat Chauth Vrat Katha