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सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् श्लोक का अर्थ Satyam Bruyat Priyan Bruyat



यह श्लोक "सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्, न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्, प्रियं च नानृतम् ब्रूयात्, एष धर्मः सनातन:" भारतीय संस्कृत ग्रंथों में से एक महत्वपूर्ण श्लोक है, जो सत्य और धर्म के महत्व को व्यक्त करता है। इस श्लोक का अर्थ निम्नलिखित है:


सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात्:
सत्य बोलो और उसे इस प्रकार बोलो कि वह प्रिय हो। यानी सत्य बोलते समय भी विनम्रता और सौम्यता रखो।


न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम्:
सत्य को इस प्रकार न बोलो कि वह अप्रिय (अप्रिय या कष्टकारी) हो। सत्य का रूप ऐसा होना चाहिए कि वह दूसरों के लिए कष्टकारी न हो।


प्रियं च नानृतम् ब्रूयात्:
प्रिय बातों को भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। यानी झूठ बोलकर प्रियता पाने का प्रयास न करें।


एष धर्मः सनातन::
यह धर्म है, जो सनातन (शाश्वत और अविनाशी) है। सत्य बोलना और सत्य के साथ जीवन जीना, यह हमेशा से धर्म रहा है।


इस श्लोक का उद्देश्य यह है कि हमें सत्य बोलना चाहिए, लेकिन उसे इस तरीके से बोलना चाहिए कि वह न तो दूसरों के लिए अप्रिय हो और न ही हम झूठ बोलकर प्रियता प्राप्त करें। सत्य बोलते समय भी संयम और अहिंसा का पालन आवश्यक है।