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मनोजवं मारुततुल्यवेगमं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। श्लोक का अर्थ



 यह श्लोक "मनोजवं मारुततुल्यवेगमं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।" श्री हनुमान जी की स्तुति से संबंधित है। इसका अर्थ और व्याख्या निम्नलिखित है:

"Manojvam Maruttulyvegam Jitendriyam Buddhimatam Senioram. Vaatatmajam Vanarayuthamukhyam Shriramdutam Sharanam Prapadye."

श्लोक का अर्थ:

"मनोजवं मारुततुल्यवेगमं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये।।"


मनोजवं
– वह जो मन की गति से भी तेज हो।

मारुततुल्यवेगमं
– वह जो पवन (वायु) के समान तेज़ हो, यानी अत्यधिक तेज़ गति वाला।

जितेन्द्रियं
– वह जो अपने इन्द्रियों पर नियंत्रण रखने में सक्षम हो।

बुद्धिमतां वरिष्ठम्
– वह जो सबसे अधिक बुद्धिमान हो।

वातात्मजं
– वह जो पवन (वायु) के पुत्र हों, अर्थात हनुमान जी का संदर्भ।

वानरयूथमुख्यं
– वह जो वानरों के समूह के नेता (मुख्य) हों, यानी हनुमान जी वानर सेना के प्रमुख हैं।

श्रीरामदूतं
– वह जो श्रीराम के संदेशवाहक (दूत) हों, हनुमान जी ने राम जी का संदेश फैलाया था।

शरणं प्रपद्ये
– मैं उनकी शरण में जाता हूँ, उनका आशीर्वाद प्राप्त करता हूँ।

श्लोक का संक्षिप्त अर्थ:

यह श्लोक हनुमान जी के अद्वितीय गुणों का वर्णन करता है। भक्त यहां हनुमान जी से प्रार्थना कर रहे हैं, जो मन से तेज़, पवन के समान तेज़, इन्द्रियों पर काबू पाने वाले, सबसे बुद्धिमान और श्रीराम के प्रिय दूत हैं। वे वानर सेना के मुख्य सेनापति हैं और उनकी शरण में जाकर भक्त भगवान श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं।


यह श्लोक हनुमान जी की महिमा का वर्णन करने के साथ-साथ उनकी शक्तियों और गुणों का आदर भी करता है, और भक्त उनकी शरण में जाकर अपने जीवन को सफल बनाने की कामना करते हैं।