यह हनुमान चालीसा की पहली चौपाई है और इसमें भगवान हनुमान की महिमा का वर्णन किया गया है। यह श्लोक भगवान हनुमान के अद्भुत ज्ञान, गुण, और उनकी महिमा को समर्पित है।
श्लोक:
"जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥"
अर्थ:
"जय हनुमान ज्ञान गुन सागर":जय हो हनुमान जी, जो ज्ञान और गुणों के सागर हैं। यहाँ पर हनुमान जी को "ज्ञान" (ज्ञान) और "गुण" (गुणवत्ताएँ) के समुद्र के रूप में दर्शाया गया है, अर्थात वे अत्यंत ज्ञानी और गुणों से परिपूर्ण हैं।
"जय कपीस तिहुँ लोक उजागर": जय हो हनुमान जी, जो तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल) में प्रसिद्ध हैं और जिन्होंने इन लोकों को अपनी उपस्थिति से उजागर किया है। यहाँ "कपीस" शब्द से तात्पर्य है "वानरराज" या "वानर के राजा", और हनुमान जी की महानता इतनी व्यापक है कि उनके यश का प्रकाश तीनों लोकों में फैल चुका है।
सारांश:
यह श्लोक भगवान हनुमान के अपार ज्ञान, गुण और उनकी सर्वव्यापक महिमा का गान करता है। हनुमान जी के बारे में कहा जाता है कि वे न केवल अपार बल के स्वामी हैं, बल्कि उनकी बुद्धि, चतुराई, और समर्पण भी अनमोल हैं। वे तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं, और उनका कार्य, बल और भक्ति सभी स्थानों पर सम्मानित है। यह श्लोक भगवान हनुमान की असीम शक्ति और महिमा को श्रद्धा और भक्ति के साथ व्यक्त करता है।