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हनुमान चालीसा का पहला दोहा और उसका अर्थ First Doha of Hanuman Chalisa and its Meaning

 


यह श्लोक हनुमान चालीसा का पहला दोहा है, जिसमें श्री गुरु और भगवान राम की महिमा का गान किया गया है। इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है:


श्लोक:

"श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनऊं रघुबर बिमल यश, जो दायकु फल चारि।।"


अर्थ:

"श्रीगुरु चरन सरोज रज":
गुरु के चरणों की धूल (सरोज रज) से अपने मन (मनु) को शुद्ध करता हूँ। यहाँ 'गुरु' से तात्पर्य भगवान हनुमान के गुरु, श्रीराम के परम भक्त महर्षि वाल्मीकि या भगवान राम हो सकते हैं, जिन्होंने हनुमान जी को ज्ञान और शक्ति दी थी।


"निज मनु मुकुरु सुधारि":
अपने मन को शुद्ध करके, जो कि एक दर्पण (मुकुर) के समान है, उसमें मनोवांछित प्रकाश (ध्यान, भक्ति, और सद्गुण) को दर्शाता हूँ।


"बरनऊं रघुबर बिमल यश":
मैं रघुकुल के रत्न (भगवान राम) के निष्कलंक (बिमल) यश का वर्णन करता हूँ। रघुकुल का आशय राम के वंश से है, जो अत्यधिक सम्मान और प्रसिद्धि के अधिकारी हैं।


"जो दायकु फल चारि":
जो चारों फल (धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष) देने वाले हैं। यहाँ 'फल चारि' का अर्थ है कि भगवान राम के यश के गान से जीवन में चारों पुण्य फल मिलते हैं:


धर्म (धार्मिक कर्तव्यों का पालन),

अर्थ (धन और समृद्धि),

काम (इच्छाओं की पूर्ति),

मोक्ष (मुक्ति और निर्वाण)।

सारांश:

यह श्लोक गुरु के चरणों में श्रद्धा व्यक्त करते हुए, मन को शुद्ध करने की प्रार्थना करता है, ताकि भगवान राम के निष्कलंक यश का वर्णन किया जा सके, जो जीवन के चारों प्रमुख फल—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—प्रदान करने वाले हैं। यह श्लोक भगवान राम के प्रति भक्ति, श्रद्धा और आस्था को प्रदर्शित करता है।