।। जय श्री नाथजी की ।।
राजस्थान का शेखावाटी अंचल वीर सपूतों की धरा के नाम से विख्यात है वही यह धरा सन्तों व महन्तों की तपोस्थली व शक्ति पीठों की धरा रही हैं। इसी श्रृखंला मंे सीकर जिलें का मीरण ग्राम भी तपोनिष्ठ सन्तों का जन्म स्थान रहा हैं। मीेरण ग्राम के भाटीवाड़ खण्डेलवाल ब्राह्मण परिवार में माघ कृष्णा दशमी विक्रम सम्वत् 1986 को श्री भूरनाथजी व ज्यानकीमाई को पुत्र रत्न के रूप में श्री नेमनाथजी महाराज का जन्म हुआ। आपके जन्म के साथ ही आपके पिताजी के वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे असामान्य रूप से रहने लगे यानि बावले का सान्ग बना लिया घर वाले उनके क्रिया कलापों से अचम्भीत होंके उन्हें साँकल से बाधकर योगी श्री ज्योतिनाथजी महाराज जो अमृतनाथ जी के शिष्य थे उनके पास ले गये उन्होनें देखकर कहा कि ऐसा बावला तो दुनिया में कोई बिरला ही होता हैं जो घर, परिवार व समाज को त्यार देता है इसे छोड़ दो यह जैसा करता है करने दो और उन्होंने उन्हे अपना शिष्य बना लिया। और भेख देकर दिक्षा दी श्री भूरनाथ जी ने जीवन पर्यन्त पालवास में साधना की ओर वही समाधी ली।
मानव जीवन का लक्ष्य है पूर्णता को प्राप्त करना सत् चित् आनन्दमय होना। मानव ईश्वर का अंश हैं तथापि सांसारिक मानव अपने सच्चिदानन्द स्वरूप को भूल कर अशान्त जीवन जीने की ओर अग्रसर है मनुष्य के जब भाग्य जागते है तो उसे सत्गुरू अवश्य मिलते है जो उसे ईश्वर के स्वरूप का ज्ञान करवा देते हैं वह ज्ञान जो अपने ईश्वरीय स्वरूप से दूर हुये व्यक्ति को ईश्वर से जोड़ दे वही सच्चा सत्गुरू है। आपके जीवन में भी सत्गुरू के रूप में पिता श्री भूरनाथजी महाराज व माता श्री ज्यानकी माई मिलें और आपको सत्मार्ग दिखाकर परोपकार के पथ पर अग्रसर कर दिया।
आपका बाल्यकाल ज्यानकी माई के संरक्षण में बीता जो एक तपोनिष्ठ महिला थी। आपने प्रारम्भिक शिक्षा के साथ साथ बचपन से ही माता ज्यानकी माई के साथ ध्यान व साधना में लीन रहने लगे व खेती का कार्य करने लगे। जब आप युवा अवस्था में हुये उस समय की परम्परा की अनुसार घर वाले ही लड़के लड़कियों की शादी तय कर देते थे । आपकी सगाई नवलगढ़ के खण्डेलवाल ब्राह्मण परिवार में करदी जब आपको पता चला तो आप स्वयं नवलगढ़ आकर शादी करवाने से इन्कार कर गये। इस पर श्री भूरनाथ जी मीरण आयें और आपको बुलाकर शादी करवाने को कहा तो आपने पूछा कि मेरी माँ ने ऐसा कौनसा जूल्म किया था जो आप छोड़कर चले गये तब उन्होंने कहा कि मैंने ईश्वर भक्ति व मोक्ष प्राप्त करने के सन्यास लिया है तो आपने कहा तब मैं भी यही करूंगा। इसपर श्री भूरनाथजी ने आदेश दिया कि जब तक ताईजी जिन्दा है यानि श्री बलदेव दासजी की पत्नी जिनके कोई संतान नही थी उनकी सेवा करना बाद में सन्यास लेना आपने पिता के वचनों का पालन करते हुए ताईजी की सेवा की और उनके स्वर्गवासी होने पर ही दीक्षा दर्शन प्राप्त किया संम्वत 2008 में श्री भूरनाथ जी महाराज नेे ग्राम भोजासर में श्री नवानाथजी महाराज व श्री श्रद्धानाथजी महाराज की उपस्थिति में आपको भेष दिया व संम्वत 2045 की आखातीज को पालवास में श्री मंगलनाथजी ने आपको दर्शन दिये आपके चिरा गुरू बने।
आपने शिष्य परम्परा को कायम रखते हुये 8 शिष्य बनाये। सन् 1994 में आपने मीरण आश्रम में श्री औकारनाथ व श्री ओमनाथ को भेष दिया और सन् 1995 में मीरण आश्रम में ही दोनों शिष्यों को श्री विक्रमनाथजी पालवास से दर्शन दिलवायें। 21 अप्रेल 2002 श्री मुक्तीनाथ, श्री विश्वनाथ व श्री पन्नानाथ को आपने भेष प्रदान किया दिनांक 27 जनवरी 2004 को श्री पारसनाथ को भेष प्रदान किया तत्पश्चात् 22 अप्रेल 2004 को चारों शिष्यों को पालवास में चिरा गुरू श्री विक्रम नाथजी से दर्शन दिलवायंे।
सन् 2004 मंे आपने मीरण आश्रम में 21 कुन्डी गायत्री महायज्ञ का आयोजन करवाया और 16 देवी देवताओं की मूर्ती प्राण प्रतिष्ठा व स्थापना करवायी। आप गायत्री के उपासक होने के साथ साथ भगवान शिव व सूर्यनारायण के परम भक्त थे। सन् 2009 में आश्रम में ज्यानकी नाथजी मावड़ी का 32 मान का विशाल भण्डारें का आयोजन किया व मीरण ग्राम के सभी जाति धर्म के लोगों का जीमण किया तथा ग्राम की परम्परा के अनुसार प्रति व्यक्ति आधा किलो लड्डू तोल कर दिया।
शिष्य परम्परा को आगे बढ़ाते हुये 24 अप्रेल 2012 को श्री सोमनाथ व श्री रविनाथ को भेष प्रदान किया और 30 अप्र्रेल 2012 में सनवाली आश्रम में चिरागुरू श्री विक्रमनाथ से दर्शन दिलवायें। सन् 2017 में श्रीमद् भागवत कथा का विशाल आयोजन किया गया व समापन पर विशाल भण्डारें का आयोजन कर सम्पूर्ण ग्राम का जीमण व लड्डू तोलने की परम्परा का निर्वहन किया।
आप पर्यावरण प्रेमी के साथ साथ पशु पक्षियों के प्रति सदैव तत्पर रहे हैं समय समय पर गौशालाओं में अनुदान प्रदान करते रहे हैं सन् 2018 में आश्रम के सामने पक्षियों कबूतरों के रहने के लिए विशाल कबूतर घर का निर्माण करवाया ओर दाना-पानी की व्यवस्था की जो निरन्तर जारी हैं।
आपने अपने जीवन काल असहाय जरूरतमन्द व्यक्तियों की सहायता के साथ साथ मन्दिरों के जीणोंद्वार करवाने में भी सदैव अग्रणी रहें हैं मीरण ग्राम में ठाकूरजी का बड़ा मन्दिर व राघवदासजी के मन्दिर का जीणोंद्वार करवाया।
23 दिसम्बर 2021 को पुनः सम्पूर्ण ग्राम का जीमण भण्डारा व प्रति व्यक्ति आधा आधा किलो लड्डू तोलकर साम्प्रदायिक सद्भाव की मीशाल कायम की सम्पूर्ण ग्राम के हिन्दू मुुस्लीम व सभी जाति धर्म केे व्यक्ति एक जाजम पर बैठकर प्रसाद ग्रहण किया व लड्डू तुलवायंे।
शेखावाटी में ही नहीं देश के कोने कोने में आपके शिष्य व अनुयायी है आप सदैव नशे से दूर रहें हैं व अपने अनुयायीयों को भी नशा मुक्ती, जरूरतमन्दों की सेवा, पशु पक्षीयों के लिए दाना पानी व चारे की व्यवस्था के साथ साथ पर्यावरण को संरक्षित रखने के लिए सदैव प्रेरित करते रहें हैै।
आप जीवन पर्यन्त भक्ति में लीन व ध्यान मग्न रहें है माँ गायत्री की उपासना व शिव गौरक्ष के जाप से भक्तों को मार्गदर्शन करते रहे हैं। वर्तमान में आप जैसे तपस्वी, सात्विक व वाणी सिद्व सन्त कोई बिरले ही मिलते है। विक्रम सवंत् 2078 माघ शुक्ल तृतीया गुरूवार को आप शिवशरण पधार गयें और चतुर्थी तिथी शुक्रवार को आश्रम प्रागंण मंे आप समाधीस्थ हुये। उस समय देश के कौने कौने से आपके शिष्य व अनुयायी व साधुसन्तों व ग्रामवासी उपस्थित थे। दिनांक 14 फरवरी सोमवार को विशाल जागरण व 15 फरवरी मंगलवार को विशाल भण्डारें का आयोजन किया जा रहा है दोपहर 2ः15 बजे चादर रस्म का आयोजन भी होगा जिसमें शेखावाटी अंचल के साधु समाज के साथ राजस्थान व हरियाणा के साधुसन्त एंव आपके शिष्य व अनुयायी भारी संख्या में उपस्थित होंगे।
ऐसे कर्म योगी, तपोनिष्ठ, सात्विक वृति व नाथ सम्प्रदाय की परम्पराओं का पालन करने वाले महान योगी श्री नेमनाथजी महाराज को कोटी कोटी नमन । आदेश आदेश आदेश।
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