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भादवा महीने में कृष्ण पक्ष की बारस यानी द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी माना जाता है. इस दिन को बछ बारस के नाम से पुकारा जाता है और इस दिन महिलाएं श्रद्धापूर्वक गौ और उनके बछड़े का पूजन करती हैं. ऐसे में आज के दिन गाय के दूध से बने उत्पादों का उपयोग नहीं किया जाता है और इसी के साथ आज गेहूं और चाकू से कटी हुई वस्तु का इस्तेमाल नहीं करते हैं और ना ही सुई का उपयोग करते हैं. आपको बता दें कि बछ बारस देश के कई हिस्सों में मनाई जाती है. वहीं इसे मनाने के तरीके भी अलग-अलग होते है. वहीं इन सभी में एक बात सभी में सामान्य है कि इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है और घर में मोठ, बाजरा, चौला, मूंग आदि को भिगोया जाता है और इस अंकुरित अनाज से पूजा होती है और इसी के साथ गाय और बछड़े की पूजा के बाद कहानी सुनी जाती है.
✳️यह व्रत संतान की लंबी आयु और उसके उज्जवल भविष्य के लिए किया जाता है। हर वर्ष भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को बछ बारस मनाया जाता है।
इस दिन गाय तथा बछड़े की पूजा की जाती है। पूजन तथा उपवास कर संतान की लंबी आयु और सुख-सौभाग्य की कामना की जाती है।
✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️घरों के बाहर गौबर से पाल बनाकर लड्डू उठाने की भी परंपरा है। व्रत करने वाली महिलाएं महिलाएं गेहूं का आटा गाय के दूध का सेवन नहीं करती हैं। वे बाजरा मोट की रोटी से व्रत खोलेंगी।
इस पर्व को लेकर विभिन्न स्थानों पर प्रचलित नियमों में भी कुछ अंतर है लेकिन इसका मूल संदेश है- संतान की खुशहाली की कामना। साथ ही यह पर्व गाय के पूजन से भी जुड़ा है। हिंदू धर्म में गौ को माता का दर्जा दिया गया है। अतः यह व्रत गौ संरक्षण का भी संदेश देता है।
हमारे शास्त्रों में इसका माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि बछ बारस के दिन जिस घर की महिलाएं गौमाता का पूजन-अर्चन करती हैं। गाय को रोटी और हरा चारा खिलाकर तृप्त करती है, उस घर में मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है और उस परिवार में कभी भी कोई अकाल मृत्यु नहीं होती है। पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कहीं गई है। पूज्यनीय गौमाता हमारी ऐसी मां है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।
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🇮🇳 🇮🇳 राष्ट्रहित सर्वोपरि 🇮🇳 🇮🇳
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पंडित :- भानुप्रकाश शर्मा
सम्पर्क :- 8233231767
सम्पर्क :- 8949649257
महाकाल ज्योतिष, जड़ाऊ मेड़ता, नागौर(राज.)
भादवा महीने में कृष्ण पक्ष की बारस यानी द्वादशी तिथि को गोवत्स द्वादशी माना जाता है. इस दिन को बछ बारस के नाम से पुकारा जाता है और इस दिन महिलाएं श्रद्धापूर्वक गौ और उनके बछड़े का पूजन करती हैं. ऐसे में आज के दिन गाय के दूध से बने उत्पादों का उपयोग नहीं किया जाता है और इसी के साथ आज गेहूं और चाकू से कटी हुई वस्तु का इस्तेमाल नहीं करते हैं और ना ही सुई का उपयोग करते हैं. आपको बता दें कि बछ बारस देश के कई हिस्सों में मनाई जाती है. वहीं इसे मनाने के तरीके भी अलग-अलग होते है. वहीं इन सभी में एक बात सभी में सामान्य है कि इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है और घर में मोठ, बाजरा, चौला, मूंग आदि को भिगोया जाता है और इस अंकुरित अनाज से पूजा होती है और इसी के साथ गाय और बछड़े की पूजा के बाद कहानी सुनी जाती है.
✳️यह व्रत संतान की लंबी आयु और उसके उज्जवल भविष्य के लिए किया जाता है। हर वर्ष भाद्रपद में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को बछ बारस मनाया जाता है।
इस दिन गाय तथा बछड़े की पूजा की जाती है। पूजन तथा उपवास कर संतान की लंबी आयु और सुख-सौभाग्य की कामना की जाती है।
✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️✳️घरों के बाहर गौबर से पाल बनाकर लड्डू उठाने की भी परंपरा है। व्रत करने वाली महिलाएं महिलाएं गेहूं का आटा गाय के दूध का सेवन नहीं करती हैं। वे बाजरा मोट की रोटी से व्रत खोलेंगी।
इस पर्व को लेकर विभिन्न स्थानों पर प्रचलित नियमों में भी कुछ अंतर है लेकिन इसका मूल संदेश है- संतान की खुशहाली की कामना। साथ ही यह पर्व गाय के पूजन से भी जुड़ा है। हिंदू धर्म में गौ को माता का दर्जा दिया गया है। अतः यह व्रत गौ संरक्षण का भी संदेश देता है।
हमारे शास्त्रों में इसका माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि बछ बारस के दिन जिस घर की महिलाएं गौमाता का पूजन-अर्चन करती हैं। गाय को रोटी और हरा चारा खिलाकर तृप्त करती है, उस घर में मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है और उस परिवार में कभी भी कोई अकाल मृत्यु नहीं होती है। पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कहीं गई है। पूज्यनीय गौमाता हमारी ऐसी मां है जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ। गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता।
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