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रिपोर्ट - रमेश कुमार शर्मा (लोहार्गल )
राजस्थान मे काफी तीर्थ-स्थान है जो अपने आप मे अपनी कहानी बयां करते है । इन्ही मे से एक है झुन्झुनूं जिले की चिराणा पंचायत का अरावली की पहाडियों से घिरा तिर्थ स्थल “किरोडी धाम” ।
अगर हम बात करे किरोडी धाम के उदगम् की तो ज्योतिषाचार्य श्री रणजीत स्वामी बताते है की वैंकटेश्वर प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘लोहार्गल महातम्य’ तथा “पदमपुराण’ मे किरोडी का उल्लेख तीर्थ के रूप मे किया गया है । ककोर्टक नामक नाग ने सघन वृक्षावली व झरनों के मध्य यहां तपस्या की थी । कुलीन वंश के इस तपस्वी नाग को तपश्चर्या के दौरान रिषी द्वारा वरदान प्रदान किया तथा इस तीर्थ को कर्कोटिका नाम भी दिया ।
एक अन्य दृष्टांत के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पाण्डवो ने अपने सगोत्रियों की हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिये इस क्षैत्र मे तीर्थो का भ्रमण किया था तथा पास ही स्थित लोहार्गल पहुंचे जहां उनके लोहे से बने अस्त्र-शस्त्र गलने लगे । इनके गलने से ही इस तीर्थ का नाम लोहार्गल पडा । बताया जाता है कि पाण्डवो की माता कुन्ती ने अपने मानसिक विवाद के निवारण के लिये पवित्र स्थल किरोडी तीर्थ मे तपस्या प्रारम्भ की जहां उनको काफी शांति मिली ।
प्रकृति की अदभुद् देन- किरोडी धाम मे पाण्डवो की माता कुन्ति की चरण पादुकायें गर्म जल के कुण्ड पर आज भी स्थित है तथा कुण्डो मे झरनों के शीतल व गर्म जल का प्रवाह निरन्तर बना रहता है अब एक कुण्ड मे शीतल तथा दूसरे कुण्ड मे गर्म जल विद्यमान है । किरोडी मे एक ही स्थान पर गर्म व ठंडे जल के झरने है स्नान की सुविधा के लिये झरनो को पाँच कदम की की दुरी पर दो कुण्डो मे विभाजित कर दिया गया ।
अरावली की पहाडियों मे प्रकृती की गोद मे बसा है किरोडी तीर्थ
शेखावाटी का आबू तीर्थ-स्थल किरोडी धाम चिराणा से किरोडी की घुमावदार घाटी मे खडी चढ़ाई के कारण थोडी कठिनाईयां होती है परन्तु प्राकृतिक दृश्यावली के कारण कठिनाईयां महसूस नही होती यहां का सुरम्य वातावरण हरियाली से लदे पहाड बहुत ही मनमोहक है यहा देशी-विदेशी पर्यटक आते रहते है ।
किरोडी मे प्रसिद्ध मंदिर श्री गिरधारी जी का है । ज्योतिषाचार्य श्री रणजीत स्वामी के अनुसार इसका निर्माण संवत् 1652 से 1684 के बीच हुआ तत्पश्चात वैशाख सुदी तृतिया (अक्षय त्रितिया) सवंत 1684 को मुर्ति स्थापना हुई । मंदिर मे भगवान कृष्ण व राधा की काली व सफेद चित्ताकर्षक मुर्तियां विराजमान है मन्दिर व्यवस्था हेतु लगभग 250 बीघा जमीन जागीर के रूप मे प्रदान की गई । मंदिर मे महंत परम्परा के चलते यहां के महंत को 108 की उपाधि से विभुषित किया जाता है । स्वतंत्रता के पश्चात जागीर होने के बाद मंदिर के प्रथम महंत श्री 108 गोवर्धन दास जी थे वर्तमान मे महंत श्री 108 राधेश्याम दास है जो की तिर्थ स्थल के व्यवस्थापक भी है ।
अन्य मंदिरो मे गंगा माता का मंदिर है व दर्शनीय स्थलों मे उदयपुरवाटी के राजा टोडरमल व उनके मुनीम मुनसाह की छतरिया स्थित है।
साथ ही हिन्दु-मुस्लिम समन्वय की प्रतीक पीर बाबा की दरगाह भी स्थित है जो करीब 400 साल पुरानी है साथ ही साथ बरखण्डी बाबा का आश्रम व हनुमान मंदिर भी अपने आप मे दर्शनीय है । यहां कल्पवृक्ष के पेड़ है जहां कई लोग दर्शन करने आते है । हनुमान मंदिर के पास ही नवलगढ के प्रसिद्ध उद्दोगपती कमल मोरारका द्वारा एक यात्री निवास बनाया गया है । तीर्थ की सुंदरता में चार चाँद लगाते हुये श्री कमल मोरारका जी द्वारा मैन रोड पर भवय द्वार का निर्माण कर तीर्थ को समर्पित किया है। कुण्ड के पास प्राचीन शिव मंदिर जो की महाभारत काल से है ,यहाँ कुछ त्याज्य तिथियों को छोड़ कर बाकि दिन राज्य ही नहीं देश के विभिन्न जगहों से लोग काल सर्प शांति हेतु यहाँ आकर रूद्र पूजा करते है। यहाँ के महंत श्री राधेश्याम दास वैष्णव बताते है की कुछेक दिन तो रुद्राभिषेक करने वाले भक्तो की लंबी लाइन हो जाती है। यहाँ मुख्यरूप से काल सर्प शान्ति, पितृ तर्पण,हेमाद्रि स्नान एवम् रुद्राभिषेक आदि कर्म यहाँ के स्थानीय व् चिराना ,उदयपुर वाटी, खंडेला,रींगस, श्रीमाधोपुर,खाटू श्याम एवं जयपुर के विद्वान् पंडितो द्वारा विधि विधान से सम्पन करवाया जाता है । श्री महंत के अनुसार यहाँ होने वाली पूजा का सौ प्रतिशत परिणाम निश्चित होता है।।
आचार्य रणजीत स्वामी ने बताया की यहा मोबाईल टावर ना होने के कारण यात्रियों को काफी समस्याये होती है। स्थानीय निवासियों को मोबाईल से बात करने के लिये दो किलोमीटर दूर चलकर जाना पडता है । कई बार असामाजिक तत्व भी कुण्ड पर आकर शराब बाजी करने लग जाते है ऐसे मे पुलिस को सूचित करने मे भी काफी मशक्कत करनी पडती है । सांसद के अथक प्रयासों से लोहार्गल मे मोबाईल टावर लग रहा है परन्तु किरोडी तीर्थ स्थल अभी भी सांसद महोदया व् विधायक डॉ राज कुमार शर्मा का इंतजार कर रहा है ।
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