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हनुमान
जी के इतने स्त्रोत है बहुधा साहित्य लिखा गया है परंतु आर्त भाव रखने
वाले और किंचित उन लोगो के लिए जिनको संस्कृत का ज्ञान नहीं है गोस्वामी
तुलसीदास जी ने स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा के रूप मैं रामचरित मानस
के किष्किन्धा काण्ड जामवंत जी के श्री हनुमान जी को बल स्मरण कराने की
चौपाई को उदार चित्त से लिख कर एक सम्पूर्ण स्तुति का रूप दे दिया है ।
मेरे निजी विश्वास की बात है और यह अनुभूत भी है की आप अगर अपने किसी कार्य
का निवेदन बजरंग बली के श्री चरणों में करते हो तो वह कार्य सफल ही होगा ।
जामवंत जी कहते है की हे तात हनुमान जी आप पवन के पुत्र हो इसलिए आपका बल
पवन के समान है । भावार्थ यह है की वायु इस संसार को चलाने और मिटाने मे
समर्थ है तथा पञ्च महाभूत जिनसे मिलकर इस मानव शरीर का निर्माण हुआ है उसके
सांस के लिए प्राणवायु है । वानरराज सुग्रीव ने किष्किन्धा से रवाना होते
समय कहा था की एक मास में माँ सीता की सुधि लेकर आनी है अन्यथा जीवन खत्म ।
इन वानरों के जीवन को बचाओ ।
हे पवन पुत्र आप बुद्धि, विवेक और विज्ञानं के अपार भण्डार हो । बुद्धि का
अर्थ यहाँ बोद्धिक चेतना से है । आप जानते हो की जिस जगह आप जा रहे हो वह
आप से सदा सर्वथा अनभिज्ञ है किन्तु आप स्वविवेक से उन आने वाली दुस्तर
परिस्थितियों को भी अपने कार्य करने के विशिस्ट ज्ञान विज्ञान द्वारा संभव
करना जानते हो । अब यहां तक जो जामवंत जी ने कहा वो उनको सावधान करने का
तथा उनसे यह विनय का था की आर्तजनो के प्राण बचाओ । लेकिन अगली पंक्ति में
उन्होंने श्री हनुमान जी को उनके भूले हुए बल की बहुत अद्भुत तरीके से याद
दिला दी ।
कवन सो काज कठिन जग माहि, जो नहीं होत तात तुम पाहि । जामवंत जी कहते है की इस जगत में ऐसा कौनसा कार्य है जो की आप ने किया नहीं और नहीं कर सकते । बहुत बड़ी बात एक छोटी सी लाइन में पवनपुत्र के विस्मर्त बल को जगाने हेतु । भावार्थ देखिये की जिसने पैदा होते ही सूर्य को लील्यो ताहि मधुर फल जानू वह सूर्य तक बालपन मे पहुँचने वाला वीर बजरग आज चुप है । आप तो भय से सदा सर्वाथ दूर हो और श्री हनुमान जी एकादश रूद्र के अवतार है और भगवान् राम के अनन्य भक्त यह बात जामवंत जी भलीभांति जानते थे सो उन्होंने यह बात कही । इतना सुनते ही केशरीसुत ने कहा की हे जामवंत जी कहिये लंका को उखाड़कर, रावण को मारकर माता सीता को ले औन । जामवंत जी ने कहा नहीं तात आप सिर्फ पता लगाओ की माता सीता है कहाँ तो श्री हनुमान जी प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि जलधि लांघ गए अचरज नाही । तो बस अर्पण कीजिये इस आस्था के साथ की बेगी हरो हनुमान महाप्रभु जो कछु संकट होय हमारो । विश्वास रखिये श्री लक्ष्मण जी के लिए द्रोण गिरी पर्वत लाने वाले के लिए हमारे कष्टों का अंत करना दुरुह नहीं है ।
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