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जहां व्यक्ति के मन में श्रद्धा डगमगाई या उसकी आस्था में कुछ कमी आई वहीं उसके विचारों में भी परिवर्तन आने लग जायेगा-महामण्डलेश्वर स्वामी जगदीष पुरी |
भीलवाड़ा। व्यकित के मन में यदि श्रद्धा का भाव है तो उसके विचार भी उत्तम होंगे। यदि मन में श्रद्धा नहीं है तो विचारों में भी उथल-पुथल चलती रहेगी। यह कहना है महामण्डलेश्वर स्वामी जगदीष पुरी महाराज का।अग्रवाल उत्सव भवन में चातुर्मास प्रवचन के दौरान आयोजित धर्मसभा को यमराज-निचिकेता प्रसंग पर उद्बोधित करते हुए स्वामी जी ने बताया कि व्यक्ति को अपने देव, धर्म और गुरु के प्रति हमेषा श्रद्धाभाव बनाये रखना चाहिये। जहां व्यक्ति के मन में श्रद्धा डगमगाई या उसकी आस्था में कुछ कमी आई वहीं उसके विचारों में भी परिवर्तन आने लग जायेगा और परिणाम स्वरुप उसके कार्य भी विपरित होंगे। मानव जीवन में परिस्थितियां विपरित भी आती हैं कई बार तो सबकुछ अच्छा करते हुए भी परिणाम अनुरुप नहीं आते हैं। ऐसे समय में व्यक्ति को घबराने की बजाय अपने देव और गुरु के प्रति पूरी श्रद्धाभाव रखकर अनुकुल समय का इन्तजार करना चाहिए किन्तु व्यक्ति ऐसा करता नहीं है और अपने देव गुरु से आस्था हटा लेता है और अन्य जगह जुड़ जाता है। जो व्यक्ति समय और परिस्थिति के अनुरुप अपने देव गुरु को बदलता है तो उसके कार्य कभी बन नहीं पाते हैं। व्यक्ति जहां जिस जगह से जुडा है उसे वहां अपनी श्रद्धा और विष्वास दृढ रखना चाहिए। विचार और भाव के प्रभाव से व्यक्ति भावुक और व्याकुल हो जाता हेै। ना तो ज्यादा भावुक होना ठीक है और ना व्यर्थ में व्याकुल होना। प्रभू इच्छा प्रबल हेै। बस अपने धर्म, गुरु और देव में विष्वास जमाये रखना चाहिए।धर्मसभा को संत नारायण चैेतन्य ने ’’ गुरुदेव दया करके, मुझको अपना लेना’’ भजन से संगीतमय बनाया।धर्मसभा में उद्योगपति रामपाल सोनी ने पहुंच प्रवचन लाभ लिया और गुरुदेव का आषीर्वाद प्राप्त किया। पधारे अतिथियों का चातुर्मास समिति के टी.सी. चैधरी, भरत व्यास व संजय निमोदिया आदि ने स्वागत किया एवं अतिथियों ने माल्यार्पण कर महामण्डलेष्वर का आषीर्वाद प्राप्त किया।
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