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अनोखी पहल.....उत्तम विचार,नयी दिशा,सकारात्मक उर्जा
कार्यक्रम :- ""माँ की महिमा"" विशेष - 5
‘ज़मीं हो या आसमां... अधूरा बिन माँ'
इस भारत भूमि में शायद ही कोई ऐसा कृतध्न हो जिसने ‘छत्रपति शिवाजी’ का नाम ना सुना हो, उनकी वीरता की कथाओं से परिचित ना हो... उन्हें शेर की तरह निडर और बहादुर बनाने वाली भी एक ‘माँ’ ही थी... जिसने बालपन से ही उसके भविष्य के लियें बड़ी ही समझदारी से संभल-संभलकर ना सिर्फ़ हर कदम रखा बल्कि उसे एक देशभक्त बनाया और सिखाया कि दुश्मन कितना भी ताकतवर हो मगर उससे घबराना नहीं चाहियें बल्कि पूरी हिम्मत और ताकत से उसका सामना करना चाहियें यदि जरुरत पड़ें तो अपने वतन के लियें जान देने से भी पीछे नहीं हटना चाहियें ।
ऐसी थी दिलेर ‘जीजाबाई’ जो किसी भी परिस्थिति से ना तो स्वयं घबराती थी, ना ही अपने बेटे को ही ऐसा करने की शिक्षा देती थी, ये उनकी पढाई गूढ़ और बहुमूल्य सीख का परिणाम था कि बालक ‘शिवा’ ने भयभीत होना सीखा ही ना था, वे एक ऐसे मराठा राजा थे, जिन्होंने अपने अपूर्व साहस से ना सिर्फ़ अपने राज्य बल्कि अपने वतन की भी रक्षा की और उस पर कब्जा जमाने का प्रयास करने वाले हर दुश्मन को धुल चटाई ।
जीजाबाई सिर्फ़ ‘शिवाजी’ की जन्मदात्री ही ना थी वो उसकी एक परम मित्र, एक सलाहकार और मार्गदर्शिका भी थी और जब भी किसी तरह का संकट आता तो वो अपनी सूझ-बुझ से उसे इस मुश्किल से निकलने की राह बताती, सही-गलत का भेद बताती और अपने देश के लियें उसके फर्ज़ का एहसास करवाती उनहोंने उसे अपने पिता की कमी का भी कभी एहसास होने ना दिया हर वक़्त उसके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर मजबूती के साथ खड़ी रही... यही वजह हैं की आज भी ‘छत्रपति शिवाजी’ का नाम उनकी माँ के बिना अधूरा समझा जाता हैं... ‘जीजाबाई’ को हम एक ऐसी माँ के रूप में देखते हैं जिन्होंने अपने पुत्र की जिंदगी बनाई... इसलियें तो आज तक दुनिया उन्हें भूला ना पाई... जय-जय जीजाबाई...
कार्यक्रम :- ""माँ की महिमा"" विशेष - 5
‘ज़मीं हो या आसमां... अधूरा बिन माँ'
इस भारत भूमि में शायद ही कोई ऐसा कृतध्न हो जिसने ‘छत्रपति शिवाजी’ का नाम ना सुना हो, उनकी वीरता की कथाओं से परिचित ना हो... उन्हें शेर की तरह निडर और बहादुर बनाने वाली भी एक ‘माँ’ ही थी... जिसने बालपन से ही उसके भविष्य के लियें बड़ी ही समझदारी से संभल-संभलकर ना सिर्फ़ हर कदम रखा बल्कि उसे एक देशभक्त बनाया और सिखाया कि दुश्मन कितना भी ताकतवर हो मगर उससे घबराना नहीं चाहियें बल्कि पूरी हिम्मत और ताकत से उसका सामना करना चाहियें यदि जरुरत पड़ें तो अपने वतन के लियें जान देने से भी पीछे नहीं हटना चाहियें ।
ऐसी थी दिलेर ‘जीजाबाई’ जो किसी भी परिस्थिति से ना तो स्वयं घबराती थी, ना ही अपने बेटे को ही ऐसा करने की शिक्षा देती थी, ये उनकी पढाई गूढ़ और बहुमूल्य सीख का परिणाम था कि बालक ‘शिवा’ ने भयभीत होना सीखा ही ना था, वे एक ऐसे मराठा राजा थे, जिन्होंने अपने अपूर्व साहस से ना सिर्फ़ अपने राज्य बल्कि अपने वतन की भी रक्षा की और उस पर कब्जा जमाने का प्रयास करने वाले हर दुश्मन को धुल चटाई ।
जीजाबाई सिर्फ़ ‘शिवाजी’ की जन्मदात्री ही ना थी वो उसकी एक परम मित्र, एक सलाहकार और मार्गदर्शिका भी थी और जब भी किसी तरह का संकट आता तो वो अपनी सूझ-बुझ से उसे इस मुश्किल से निकलने की राह बताती, सही-गलत का भेद बताती और अपने देश के लियें उसके फर्ज़ का एहसास करवाती उनहोंने उसे अपने पिता की कमी का भी कभी एहसास होने ना दिया हर वक़्त उसके साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर मजबूती के साथ खड़ी रही... यही वजह हैं की आज भी ‘छत्रपति शिवाजी’ का नाम उनकी माँ के बिना अधूरा समझा जाता हैं... ‘जीजाबाई’ को हम एक ऐसी माँ के रूप में देखते हैं जिन्होंने अपने पुत्र की जिंदगी बनाई... इसलियें तो आज तक दुनिया उन्हें भूला ना पाई... जय-जय जीजाबाई...
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