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अनोखी पहल.....उत्तम
विचार,नयी दिशा,सकारात्मक उर्जा
कार्यक्रम :- ""मातृ दिवस""
‘सृष्टिचक्र की धूरी, जगत की गरिमा... बस ‘माँ’
सम्भवतः ‘हव्वा’ इस संसार की प्रथम माँ होगी, जिसने सर्वप्रथम ‘मातृत्व’ के इस अनुपम एहसास को जिया होगा... और फिर ये सिलसिला धीरे-धीरे क्रमिक रूप से चलने वाली परम्परा के रूप में हम सब के द्वारा इसी प्रकार दोहराया जाने लगा... ‘ईश्वर’ ने ‘नारी’ को अपने ही समान जन्म देने की शक्ति से इसलियें नवाजा था, जिससे की सृष्टि का संचालन सुचारू रूप से चलता रहें... हमारे शास्त्रों के अनुसार ‘ब्रम्हा’ ने ये समस्त ब्रह्मांड रचा, भगवान ‘विष्णु’ इसका पालन-पोषण करते हैं और ‘माँ’ संतति के द्वारा इसे गतिमान बनायें रखती हैं, इस प्रकार ‘माँ’ इस सृष्टि चक्र की धूरी हैं, जिससे ये समस्त जगत चलायमान होता हैं... भगवान भी माँ की ममता और लाड-दुलार पाने उसकी गोद में आने लालयित रहते हैं... एक माँ ही हैं जो निःस्वार्थ आजीवन अपनी संतान के सुख की मंगलकामना करती हैं और उसकी ख़ुशी के लियें अपने प्राण निछावर करने से भी पीछे नहीं हटती... इसलियें तो हमारे यहाँ सुबह उठते ही उसके चरण स्पर्श कर अपना दिन शुरू करने की सीख दी जाती हैं और उसे परमेश्वर के बराबर माना जाता हैं...। आज के समय में हम उसे भले ही ‘प्रभु’ का दर्जा ना दे मगर उसके बुढ़ापे में उसका उसी प्रकार सहारा बन सकें जिस तरह उसने हमारे बचपन को संभाला हैं, तो शायद हम ‘मातृऋण’ से मुक्त हो सकें और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी ऐसा करने की एक ऐसी नेक आदत डाल सकें जिससे कि कभी किसी माता-पिता को अपनी असहाय अवस्था में किसी ‘वृद्धाश्रम’ की शरण लेना पड़े या दर-दर की ठोकरें खानी पड़ें... यही इस ‘विश्व मातृ दिवस’ की सार्थकता होगी... इसी हार्दिक कामना के साथ आप सभी को इस खुबसूरत दिन की अनंत शुभकामनायें... माँ तुझे प्रणाम... !!!
AKHIL VISHWA KHANDAL BANDHU EKTA
‘सृष्टिचक्र की धूरी, जगत की गरिमा... बस ‘माँ’
सम्भवतः ‘हव्वा’ इस संसार की प्रथम माँ होगी, जिसने सर्वप्रथम ‘मातृत्व’ के इस अनुपम एहसास को जिया होगा... और फिर ये सिलसिला धीरे-धीरे क्रमिक रूप से चलने वाली परम्परा के रूप में हम सब के द्वारा इसी प्रकार दोहराया जाने लगा... ‘ईश्वर’ ने ‘नारी’ को अपने ही समान जन्म देने की शक्ति से इसलियें नवाजा था, जिससे की सृष्टि का संचालन सुचारू रूप से चलता रहें... हमारे शास्त्रों के अनुसार ‘ब्रम्हा’ ने ये समस्त ब्रह्मांड रचा, भगवान ‘विष्णु’ इसका पालन-पोषण करते हैं और ‘माँ’ संतति के द्वारा इसे गतिमान बनायें रखती हैं, इस प्रकार ‘माँ’ इस सृष्टि चक्र की धूरी हैं, जिससे ये समस्त जगत चलायमान होता हैं... भगवान भी माँ की ममता और लाड-दुलार पाने उसकी गोद में आने लालयित रहते हैं... एक माँ ही हैं जो निःस्वार्थ आजीवन अपनी संतान के सुख की मंगलकामना करती हैं और उसकी ख़ुशी के लियें अपने प्राण निछावर करने से भी पीछे नहीं हटती... इसलियें तो हमारे यहाँ सुबह उठते ही उसके चरण स्पर्श कर अपना दिन शुरू करने की सीख दी जाती हैं और उसे परमेश्वर के बराबर माना जाता हैं...। आज के समय में हम उसे भले ही ‘प्रभु’ का दर्जा ना दे मगर उसके बुढ़ापे में उसका उसी प्रकार सहारा बन सकें जिस तरह उसने हमारे बचपन को संभाला हैं, तो शायद हम ‘मातृऋण’ से मुक्त हो सकें और अपनी आने वाली पीढ़ी को भी ऐसा करने की एक ऐसी नेक आदत डाल सकें जिससे कि कभी किसी माता-पिता को अपनी असहाय अवस्था में किसी ‘वृद्धाश्रम’ की शरण लेना पड़े या दर-दर की ठोकरें खानी पड़ें... यही इस ‘विश्व मातृ दिवस’ की सार्थकता होगी... इसी हार्दिक कामना के साथ आप सभी को इस खुबसूरत दिन की अनंत शुभकामनायें... माँ तुझे प्रणाम... !!!
Smritii Sharma
AKHIL VISHWA KHANDAL BANDHU EKTA
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